Choti Choti Gaiya Chote Chote Gwal

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Video: Choti Choti Gaiya, beautiful Bhajan

 

Choti Choti Gaiya Chote Chote Gwal lyrics (English)

With Meaning (English Translation)

Choti Choti Gaiyan, Chote Chote Gwaal

Choto so mero madana gopal (1)

With all the little cows and little bullocks there is little Krishna.

Aage Aage Gaiyan, Peeche Peeche Gwaal

Beecha mein mero madana gopal (2)

The cows are in front and the bullocks are in back, in the middle is little Krishna.

Kaare Kaare Gaiyan , Gore Gore Gwaal

Shyama Varana Mero Madana Gopal (3)

The cows are dark and the bullocks are fair, while little Krishna is radiating.

Choti choti sakhiyan madhuvana baag

raasu rachave mero madan gopal (4)

Video: Choti Choti Gaiya song

Choti Choti Gayian  lyrics (Hindi)

 छोटी छोटी गैयाँ छोटे छोटे ग्वाल

छोटी छोटी गैयाँ छोटे छोटे ग्वाल

छोटो सो मेरो मदन गोपाल

छोटो सो मेरो मदन गोपाल

छोटी छोटी गैयाँ छोटे छोटे ग्वाल

छोटो सो मेरो मदन गोपाल

अरी छोटो सो मेरो मदन गोपाल

आगे आगे गईं पीछे पीछे ग्वाल

आगे आगे गईं पीछे पीछे ग्वाल

आगे आगे गईं पीछे पीछे ग्वाल

आगे आगे गईं पीछे पीछे ग्वाल

बीच में मेरो मदन गोपाल

बीच में मेरो मदन गोपाल

छोटी छोटी गैयाँ छोटे छोटे ग्वाल

छोटी छोटी गैयाँ छोटे छोटे ग्वाल

छोटो सो,छोटो सो, छोटो सो मेरो मदन गोपाल

छोटो सो मेरो मदन गोपाल

छोटी छोटी गैयाँ छोटे छोटे ग्वाल

छोटी छोटी गैयाँ छोटे छोटे ग्वाल

छोटो सो मेरो मदन गोपाल

अरी छोटो सो मेरो मदन गोपाल

छोटी छोटी सखिया मधुबन बाग़

छोटी छोटी सखिया मधुबन बाग़

छोटी छोटी सखिया मधुबन बाग़

छोटी छोटी सखिया मधुबन बाग़

रास रचाबे मेरो मदन गोपाल

रास रचाबे मेरो मदन गोपाल

रास रचाबे मेरो मदन गोपाल

छोटी छोटी गैयाँ छोटे छोटे ग्वाल

छोटी छोटी गैयाँ छोटे छोटे ग्वाल

छोटो सो,छोटो सो, छोटो सो मेरो मदन गोपाल

छोटो सो मेरो मदन गोपाल

छोटी छोटी गैयाँ छोटे छोटे ग्वाल

छोटी छोटी गैयाँ छोटे छोटे ग्वाल

छोटो सो मेरो मदन गोपाल

छोटो सो मेरो मदन गोपाल

छोटी छोटी गैयाँ छोटे छोटे ग्वाल

छोटी छोटी गैयाँ छोटे छोटे ग्वाल

छोटो सो मेरो मदन गोपाल

अरी छोटो सो मेरो मदन गोपाल

माखन खाए मेरो मदन गोपाल

बंसी बजाये मेरो मदन गोपाल

रास रचाए मेरो मदन गोपाल

छोटी छोटी गैयाँ छोटे छोटे ग्वाल

छोटी छोटी गैयाँ छोटे छोटे ग्वाल

छोटो सो मेरो मदन गोपाल

छोटो सो मेरो मदन गोपाल

Video: Dance on Choti Choti Gaiya song

एकादशी व्रत और उसका महत्व क्या है किस प्रकार किया जाए

एकादशी व्रत और उसका महत्व क्या है किस प्रकार किया जाए

 हिन्दी अनुवाद : अंकिता मावंडिया

प्रुफ रीडींग : भक्तिन बेनू

  • एकादशी पर उपवास क्यों करें – इसकी महत्ता। कन्नड़ भाषा में ऑडियो क्लिप
  • एकादशी की तिथियाँ और इसका महात्म्य दर्शाती कथाएं
  • हिंदी में indif.com पर एकादशी व्रत की कथाएं
  • एकादशी – भूमिका, इसका सन्दर्भ इत्यादि  (गौड़ीय वैष्णव परंपरा)
  • वैदिक दिनदर्शिका (बिना मूल्य के उपलब्ध) एकादशी (एवं अन्य तिथियाँ) की गणना विश्व के किसी कोने में करने में सक्षम है।
  • पुष्टिमार्ग एकादशी दिनदर्शिका
  • आपके शहर का पंचांग / पंचांगम
  • एकादशी की तिथियाँ और उनका महात्म्य
  • वर्ष की एकादशी तिथियाँ
  • विश्व का पंचांग के प्रयोग से अपने नगर की एकादशी व्रत की तिथि पता लगायें।
  • मैं भारतीय पंचांग को विदेश में प्रयोग क्यों नहीं कर सकता (एकादशी की तिथियाँ विदेश में भारतीय पंचांग से अलग होती हैं। )

ऊपर दी गयी जानकारियों के लिए कृपया  http://en.wikipedia.org/wiki/Ekadashi पर जाएँ ।

एकादशी क्या हैं?

संस्कृत शब्द एकादशी का शाब्दिक अर्थ ग्यारह होता है। एकादशी पंद्रह दिवसीय पक्ष (चन्द्र मास) के ग्यारवें दिन आती है। एक चन्द्र मास (शुक्ल पक्ष) में  चन्द्रमा अमावस्या से बढ़कर पूर्णिमा तक जाता है, और उसके अगले पक्ष में (कृष्ण पक्ष) वह पूर्णिमा के पूर्ण चन्द्र से घटते हुए अमावस्या तक जाता है। इसलिए हर कैलंडर महीने (सूर्या) में एकादशी दो बार आती है, शुक्ल एकादशी जो कि बढ़ते हुए चन्द्रमा के ग्यारवें दिन आती है, और कृष्ण एकादशी जो कि घटते हुए चन्द्रमा के ग्यारवें दिन आती हैं। ऐसा निर्देश हैं कि हर वैष्णव को एकादशी के दिन व्रत करना चाहियें। इस प्रकार की गई तपस्या भक्तिमयी जीवन के लिए अत्यंत लाभकारी हैं।

एकादशी का उद्गम

पद्मा पुराण के चतुर्दश अध्याय में, क्रिया-सागर सार नामक भाग में, श्रील व्यासदेव एकादशी के उद्गम की व्याख्या जैमिनी ऋषि को इस प्रकार करते हैं :

इस भौतिक जगत के उत्पत्ति के समय, परम पुरुष भगवान् ने, पापियों को दण्डित करने के लिए पाप का मूर्तिमान रूप लिए एक व्यक्तित्व की रचना की (पापपुरुष)। इस व्यक्ति के चारों हाथ पाँव की रचना अनेकों पाप कर्मों से की गयी थी। इस पापपुरुष को नियंत्रित करने के लिए यमराज की उत्पत्ति अनेकों नरकीय ग्रह प्रणालियों की रचना के साथ हुई। वे जीवात्माएं जो अत्यंत पापी होती हैं, उन्हें मृत्युपर्यंत यमराज के पास भेज दिया जाता है,  यमराज ,जीव को उसके पापों के भोगों के अनुसार नरक में पीड़ित होने के लिए भेज देते हैं।

इस प्रकार जीवात्मा अपने कर्मों के अनुसार सुख और दुःख भोगने लगी। इतने सारी जीवात्माओं को नरकों में कष्ट भोगते देख परम कृपालु भगवान् को उनके लिए बुरा लगने लगा। उनकी सहायतावश भगवान् ने अपने स्वयं के स्वरुप से, पाक्षिक एकादशी के रूप को अवतरित किया। इस कारण, एकादशी एक चन्द्र पक्ष के पन्द्रवें दिन उपवास करने के व्रत का ही व्यक्तिकरण है । इस कारण एकादशी और भगवान् श्री विष्णु अभिन्न नहीं है। श्री एकादशी व्रत अत्यधिक पुण्य कर्म हैं, जो कि हर लिए गए संकल्पों में शीर्ष स्थान पर स्थित है।

तदुपरांत विभिन्न पाप कर्मी जीवात्माएं एकादशी व्रत का नियम पालन करने लगी और उस कारण उन्हें तुरंत ही वैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होने लगी। श्री एकादशी के पालन से हुए अधिरोहण से , पापपुरुष (पाप का मूर्तिमान स्वरुप) को धीरे धीरे दृश्य होने लगा कि अब उसका अस्तित्व ही खतरे में पड़ने लगा है। वह भगवान् श्री विष्णु के पास प्रार्थना करते हुए पहुँचा, “हे प्रभु, मैं आपके द्वारा निर्मित आपकी ही कृति हूँ और मेरे माध्यम से ही आप घोर पाप कर्मों वाले जीवों को अपनी इच्छा से पीड़ित करते हैं। परन्तु अब श्री एकादशी के प्रभाव से अब मेरा ह्रास हो रहा है। आप कृपा करके मेरी रक्षा एकादशी के भय से करें। कोई भी पुण्य कर्म मुझे नहीं बाँध सकता हैं। परन्तु आपके ही स्वरुप में एकादशी मुझे प्रतिरोधित कर रही हैं। मुझे ऐसा कोई स्थान ज्ञात नहीं जहाँ मैं श्री एकादशी के भय से मुक्त रह सकूं। हे मेरे स्वामी! मैं आपकी ही कृति से उत्पन्न हूँ, इसलिए कृपा करके मुझे ऐसे स्थान का पता बताईये जहाँ मैं निर्भीक होकर निवास कर सकूँ।”

तदुपरांत, पापपुरुष की स्थिति पर अवलोकन करते हुए भगवान् श्री विष्णु ने कहा, “हे पापपुरुष! उठो! अब और शोकाकुल मत हो। केवल सुनो, और मैं तुम्हे बताता हूँ कि तुम एकादशी के पवित्र दिन पर कहाँ निवास कर सकते हो। एकादशी का दिन जो त्रिलोक में लाभ देने वाला है, उस दिन तुम अन्न जैसे खाद्य पदार्थ की शरण में जा सकते हो।  अब तुम्हारे पास शोकाकुल होने का कोई कारण नहीं है, क्योंकि मेरे ही स्वरुप में श्री एकादशी देवी अब तुम्हे अवरोधित नहीं करेगी।” पापपुरुष को आश्वाशन देने के बाद भगवान श्री विष्णु अंतर्ध्यान हो गए और पापपुरुष पुनः अपने कर्मों को पूरा करने में लग गया। भगवान विष्णु के इस निर्देश के अनुसार, संसार भर में जितने भी पाप कर्म पाए जा सकते हैं वे सब इन खाद्य पदार्थ (अनाज) में निवास करते हैं। इसलिए वे मनुष्य गण जो कि जीवात्मा के आधारभूत लाभ के प्रति सजग होते हैं  वे कभी एकादशी के दिन अन्न नहीं ग्रहण करते हैं।

एकादशी व्रत धारण करना

सभी वैदिक शास्त्र एकादशी के दिन पूर्ण रूप से उपवास( निर्जल) करने की दृढ़ता से अनुशंसा करते हैं। आध्यात्मिक प्रगति के लिए आयु आठ से अस्सी तक के हर किसी को वर्ण आश्रम, लिंग भेद या और किसी भौतिक वैचारिकता की अपेक्षा कर के एकादशी के दिन व्रत करने की अनुशंसा की गयी है।

वे लोग जो पूर्ण रूप से उपवास नहीं कर सकते उनके लिए मध्याह्न या संध्या काल में एक बार भोजन करके एकादशी व्रत करने की भी अनुशंसा की गयी हैं। परन्तु इस दिन किसी भी रूप में किसी को भी किसी भी स्थिति में अन्न नहीं ग्रहण करना चाहिये।

एकादशी पर भक्तिमयी सेवा

एकादशी को उसके सभी लाभों के साथ ऐसा उपाय या साधन समझना चाहिये जो सभी जीवों के परम लक्ष्य, भगवद भक्ति, को प्राप्त करने में सहायक हैं । भगवान् की कृपा से यह दिन भगवान् की भक्तिमयी सेवा करने के लिए अति शुभकारी एवं फलदायक बन गया है। पापमयी इच्छाओं से मुक्त हो एक भक्त विशुद्ध भक्तिमयी सेवा कर सकता है और ईश्वर की कृपापात्र बन सकता है।

इसलिए, भक्तों के लिए, एकादशी के दिन व्रत करना साधना-भक्ति के मार्ग में प्रगति करने का माध्यम है। व्रत करने की क्रिया चेतना का शुद्धिकरण करती है और भक्त को कितने ही भौतिक विचारों से मुक्त करती है। क्योंकि इस दिन की गई भक्तिमयी सेवा का लाभ किसी और दिन की गई सेवा से कई गुना अधिक होता है, इसलिए भक्त जितना अधिक से अधिक हो सके आज के दिन जप, कीर्तन, भगवान की लीला संस्मरण पर चर्चाएँ आदि अन्य भक्तिमयी सेवाएं किया करते हैं।

श्रील प्रभुपाद ने भक्तों के लिए इस दिन कम से कम पच्चीस जप माला संख्या पूरी करने, भगवान् के लीला संस्मरणों को पढ़ने एवं भौतिक कार्यकलापों में न्यूनतम संलग्न होने की अनुशंसा की है।  हालाँकि, वे भक्त जो पहले से ही भगवान् की भक्ति की सेवाओं( जैसे पुस्तक वितरण, प्रवचन आदि)  में सक्रियता से लगे हुए हैं उनके लिए उन्होंने कुछ छूट दी हैं, जैसे उन खाद्यों को वे इस दिन भी खा या पी सकते है जिनमे अन्न नहीं हैं।

एकादशी का महात्म्य

श्रील जीव गोस्वामी द्वारा रचित, भक्ति-सन्दर्भ में स्कन्द पुराण में से लिया हुआ एक श्लोक भर्त्सना करते हुए बताता है कि जो मनुष्य एकादशी के दिन अन्न ग्रहण करते हैं वो मनुष्य अपने माता, पिता, भाइयों एवं अपने गुरु की मृत्यु का दोषी होते हैं, वैसे मनुष्य अगर वैकुंठ धाम तक भी पहुँच जाएँ तो भी वे वहाँ से नीचे गिर जाते हैं। उस दिन किसी भी तरह के अन्न को ग्रहण करना सर्वथा वर्जित है, चाहे वह भगवान् विष्णु को ही क्यों न अर्पित हो।

ब्रह्म-वैवर्त पुराण में कहा गया है कि जो कोई भी एकादशी के दिन व्रत करता है वो सभी पाप कर्मों के दोषों से मुक्त हो जाता हैं और आध्यात्मिक जीवन में प्रगति करता है। मूल सिद्धांत केवल उस दिन भूखे रहना नहीं है, बल्कि अपनी निष्ठा और प्रेम को गोविन्द, या कृष्ण पर और भी सुदृढ़ करना है। एकादशी के दिन व्रत का मुख्य कारण है अपनी शरीर की जरूरतों को घटाना और अपने समय का भगवान् की सेवा में जप या किसी और सेवा के रूप में व्यय करना है। उपवास के दिन सर्वश्रेष्ठ कार्य तो भगवान् गोविन्द के लीलाओं का ध्यान करना और उनके पावन नामों को निरंतर सुनते रहना है।

एकादशी व्रत दोनों हरे कृष्ण भक्तों एवं हिन्दुओं द्वारा चन्द्रमा के बढ़ते हुए शुक्ल पक्ष के ग्यारवे दिन किया जाता है। इस व्रत के पालन के लिए कौन सी चीजें खाई जा सकती हैं, सम्बन्धी कई नियम है जो कि व्रत की सख़्ती के अनुसार बदल सकते हैं। वैष्णव पंचांग के परामर्श के अनुसार ही व्रत करना चाहिये ताकि सही दिन व्रत किया जा सके।

एकादशी व्रत धारण करने के नियम

पूर्ण उपवास अपनी इन्द्रियों को नियंत्रित करने की बहुत ही उचित क्रिया है, परन्तु व्रत धारण करने का मुख्य कारण कृष्ण का स्मरण/ध्यान करना है। उस दिन शरीर की जरूरतों को सरल कर दिया जाता है, और उस दिन कम सो कर भक्तिमयी सेवा, शास्त्र अध्ययन और जप आदि पर ध्यान केन्द्रित करने की अनुशंसा की गई हैं।

व्रत का आरंभ सूर्योदय से होता है और अगले दिन के सूर्योदय तक चलता है, इसलिए अगर कोई इस बीच अन्न ग्रहण कर लेता है तो व्रत टूट जाता है। वैदिक शिक्षाओं में सूर्योदय के पूर्व खाने की अनुशंषा नहीं की गयी हैं खासकर एकादशी के दिन तो बिलकुल नहीं। एकादशी व्रत का पालन उस दिन जागने के बाद से ही मानना चाहिये। अगर व्रत गलती से टूट जाए तो उसे बाकि के दिन अथवा अगले दिन तक पूरा करना चाहिये।

वे जन जो बहुत ही सख्ती से एकादशी व्रत का पालन करते हैं उन्हें पिछली रात्रि के सूर्यास्त के बाद से कुछ भी नहीं खाना चाहिये ताकि वे आश्वस्त हो सके कि पेट में एकादशी के दिन कुछ भी बिना पचा हुआ भोजन शेष न बचा हो। बहुत लोग वैसा कोई प्रसाद भी नहीं ग्रहण करते जिनमें अन्न डला हो। वैदिक शास्त्र शिक्षा देते हैं कि एकादशी के दिन साक्षात् पाप (पाप पुरुष) अन्न में वास करता है, और इसलिए किसी भी तरह से उनका प्रयोंग नहीं किया जाना चाहिये ( चाहे कृष्ण को अर्पित ही क्यों न हो) । एकादशी के दिन का अन्न के प्रसाद को अगले दिन तक संग्रह कर के रखना चाहिये या फिर उन लोगों में वितरित कर देना चाहिये जो इसका नियम सख्ती से नहीं मानते या फिर पशुओं को दे देना चाहिये।

एकादशी व्रत को कैसे तोड़े

अगर व्रत निर्जल( पूर्ण उपवास बिना जल ग्रहण किये) किया गया है तो व्रत को अगले दिन अन्न से तोड़ना आवश्यक नहीं है। व्रत को चरणामृत( वैसा जल जिससे कृष्ण के चरणों को धोया गया हो), दूध या फल से वैष्णव पंचांग में दिए नियत समय पर तोड़ा जा सकता है। यह समय आप किस स्थान पर हैं उसके अनुसार बदलता रहता है। अगर पूर्ण एकादशी के स्थान पर फल, सब्जियों और मेवों के प्रयोग से एकादशी की गयी हैं तो उसे तोड़ने के लिए अन्न ग्रहण करना अनिवार्य हैं।

खाद्य पदार्थ जो एकादशी व्रत में खाए जा सकते हैं

श्रीला प्रभुपाद  ने पूर्ण एकादशी करने के लिए कभी बाध्य नहीं किया, उन्होंने सरल रूप से भोजन करके जप एवं भक्तिमयी सेवा पर पूरा ध्यान केन्द्रित करने को कहा। निम्नलिखित वस्तुएं और मसालें व्रत के भोजन में उपयोग किये जा सकते हैं:

  • सभी फल (ताजा एवं सूखें);
  • सभी मेवें बादाम आदि और उनका तेल;
  • हर प्रकार की चीनी;
  • कुट्टू
  • आलू, साबूदाना, शकरकंद;
  • नारियल;
  • जैतून;
  • दूध;
  • ताज़ी अदरख;
  • काली मिर्च और
  • सेंधा नमक ।

एकादशी पर वर्जित खाद्य

अगर अन्न का एक भी कण गलती से भी ग्रहण कर लिया गया हो तो एकादशी व्रत विफल हो जाता है। इसलिए उस दिन भोजन पकाते समय काफी सावधानी बरतनी चाहिये और मसालों को केवल नए पेकिंग से, जो अन्न से अनछुए हो, से ही लेना चाहिये। निम्नलिखित खाद्यों का प्रयोग एकादशी के दिन निषेध बताया गया है :

  • सभी प्रकार के अनाज (जैसे बाजरा, जौ, मैदा, चावल और उरद दाल आटा) और उनसे बनी कोई भी वस्तु;
  • मटर, छोला, दाल और सभी प्रकार की सेम, उनसे बनी अन्य वस्तुएं जैसे टोफू;
  • नमक, बेकिंग सोडा, बेकिंग पावडर, कस्टर्ड और अन्य कई मिठाईयों का प्रयोग नहीं किया जाता क्योंकि उनमें कई बार चावल का आटा मिला होता है;
  • तिल (सत-तिल एकादशी अपवाद है, उस दिन तिल को भगवान् को अर्पित भी किया जाता है और उसको ग्रहण भी किया जा सकता है) और
  • मसालें जैसे कि हींग, लौंग, मेथी, सरसों, इमली, सौंफ़ इलायची, और जायफल।

एकादशी के दिन व्रत धारण करना कृष्ण भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण तप है और यह आध्यात्मिक प्रगति को बढ़ाने के लिए किया जाता है। बिलकुल निराहार व्रत करके कमजोर होकर अपनी कार्यों एवं भक्तिमयी सेवाओं में अक्षम हो जाने से बेहतर है थोड़ा उन चीजों को खाकर व्रत करना जो व्रत में खायी जा सकती हैं।

– प्रिया चौहान

What is Ekadashi vrat (vratham) & its importance?

What is Ekadasi?

The Sanskrit word Ekadasi literally means eleven. Ekadasi is the eleventh of the fifteen-day lunar month. In one of the lunar months (called the light month) the moon grows from new moon to full moon and in the following lunar month (called dark month) it diminishes from full moon to no-moon. Thus every calendar (solar) month there are two Ekadasis, the light Ekadasi that occurs on the eleventh day of the waxing moon, and the dark Ekadasi that occurs on the eleventh day of the waning moon. It is recommended that all Vaisnavas should fast on this day of Ekadasi. Such austerity will be greatly beneficial for their devotional life.

Origin of Ekadasi

In the fourteenth chapter of Padma Purana, in the section named Kriya-sagara-sara, Srila Vyasadeva explains the origin of Ekadasi to Sage Jaimini as follows:

At the beginning of the material creation, the Supreme Lord, for the purpose of punishing the sinful human beings, created a personality whose form was the embodiment of sin (Papapurusha). The different limbs of this personality were constructed of the various sinful activities. In order to control Papapurusha, the personality known as Yamaraja came into existence along with the different hellish planetary systems. Those living entities that are very sinful are sent after death to Yamaraja, who will in turn, according to their sins, send them to a hellish region to suffer.

The living entities, according to their karmic activities thus began to enjoy or suffer. Seeing so many souls suffer in hellish condition, the compassionate Lord began to feel sorry for them. In order to help them He manifested from His own form the deity of the lunar day Ekadasi. Thus, Ekadasi is the personification of the vow to fast on the eleventh day of the lunar month. Therefore Ekadasi is the selfsame form of the Supreme Lord Vishnu. Sri Ekadasi is the utmost pious activity and is situated at the head among all vows.

Afterwards the different sinful living entities began to follow the vow of Ekadasi and were then elevated quickly to the abode of Vaikuntha. Following the ascension of Sri Ekadasi, Papapurusha (sin personified) gradually saw that his own existence was being threatened. He approached Lord Vishnu praying that, ‘O Lord, I am your created progeny, and it is through me that you wanted distress given to the living entities who are very sinful. But now, by the influence of Sri Ekadasi, I have become all but destroyed. You please save me from the fear of Ekadasi. No type of pious activity can bind me. But Ekadasi only, being Your own manifested form, can impede me. I cannot find a place where I can be free from fear of Sri Ekadasi. Oh my Master! I am a product of Your creation, so therefore very mercifully direct me to a place where I can reside fearlessly.’

After this, Lord Vishnu, observing the condition of the Papapurusha began to speak thus: ‘Oh Papapurusha! Rise up! Don’t lament any longer. Just listen, and I’ll tell you where you can stay on the auspicious lunar day of Ekadasi. On the day of Ekadasi, which is the benefactor of the three worlds, you can take shelter of foodstuff in the form of grains. There is no reason to worry about this any more, because My form as Sri Ekadasi Devi will no longer impede you.’ After giving direction to the Papapurusha, the Supreme Lord Vishnu disappeared and the Papapurusha returned to the performance of his own activities. According to the instructions of Lord Vishnu, every kind of sinful activity that can be found in the material world takes its residence in this place of foodstuff (grains). Therefore those persons who are serious about the ultimate benefit for the soul will never eat grains on the Ekadasi day.

Observing Ekadasi

All Vedic scriptures thus strongly recommend observing complete fast on the day of Ekadasi (without drinking water). Every one from the age of eight to eighty, irrespective of varna-ashram, gender, or any material consideration is recommended to fast on this day to make spiritual progress.

For those who cannot perform the austerity of complete fasting, it is recommended that one can follow Ekadasi by eating once a day at midday, or eating once a day in the evening. However under no conditions should one eat grains in any form on this day.

Devotional service on Ekadasi

Ekadasi with all its benefits should be understood as something that is there to support the ultimate goal of every living entity, devotional service to the Lord. By the mercy of the Lord, this day has become extremely auspicious for the performance of devotional service. Freed from so many sinful desires a devotee can execute unalloyed devotional service and receive the mercy of the Lord.

So, for devotees, fasting on Ekadasi is a means to progress on their path of sadhana-bhakti. The process of fasting is purifying to the consciousness and it frees up the devotee from so many material considerations. Since devotional service performed on this day is several times more effective, devotees like to engage themselves as much as possible in chanting, kirtan, discussing the pastimes of the Lord and performing other forms of devotional service.

Srila Prabhupada recommended that devotees should try and chant at least twenty-five rounds on this day, read about the Lord pastimes and minimize material affairs. However, understanding that devotees who are already fully engaged in active service of the Lord (like book distribution, preaching etc.) he made some concessions, like eating and drinking liquids in the day as long as there is no grains in them.

Glories of Ekadasi

In the Bhakti-sandarbha, by Srila Jiva Gosvami, there is a quotation from the Skanda Purana admonishing that a person who eats grains on Ekadasi becomes a murderer of his mother, father, brother and spiritual master, and even if he is elevated to a Vaikuntha planet, he falls down. It is strictly forbidden for one to accept any kind of grain on Ekadasi, even if it is offered to Lord Vishnu.

In the Brahma-vaivarta Purana it is said that one who observes fasting on Ekadasi day is freed from all kinds of reactions to sinful activities and advances in pious life. The basic principle is not just to fast, but to increase one’s faith and love for Govinda, or Krishna. The real reason for observing fast on Ekadasi is to minimize the demands of the body and to engage our time in the service of the Lord by chanting or performing similar service. The best thing to do on fasting days is to remember the pastimes of Govinda and to hear His holy name constantly.

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Ekadashi Vrat Food (Khana)

Ekadashi Vrat Katha in Hindi

Ekadasi: Grain Free Recipes

Ekadashi Vrat Katha in English

  • Why to fast on Ekadashi – its significance. Short audio clip in Kannada
  • Ekadashi Dates & its Importance Stories(Mahaatmya)
  • Ekadashi Vrat Kathas in Hindi at Indif.Com
  • Ekadasi – background, references, etc. (Gaudiya Vaishnava tradition)
  • Vedic Calendar Program (freeware) Calculates Ekadasis (and other dates) for any location in the world.
  • Pushtimarg Ekadashi Calendar
  • Panchanga / panchangam for your city
  • Ekadashi Dates & Mahatmya
  • Ekadashi dates for the year
  • Panchang for the world to find out ekadashi dates for your city
  • Why Can’t I use Indian Panchangam abroad (Ekadashi dates in Indian panchangam will differ in abroad )
  • For any above information, please visit : http://en.wikipedia.org/wiki/Ekadashi

How to Fast on Ekadasi

Ekadasi (sometimes spell Ekadashi) is a fast observed by both Hare Krishna devotees and Hindus on the eleventh day of the waxing moon. There are many rules regarding foods that can be consumed and differ depending on the strictness of the fast. A Vaishnava calendar should be consulted so individuals can fast on the correct day.

Rules for Observing Ekadasi Fast

Full fasting on Ekadasi is good practice in restraining the senses, though the main reason for observing the fast is to remember Krishna. The needs of the body are simplified on this day and it is advised to sleep less to concentrate on devotional service, read scriptures and chant.

The fast begins at sunrise and lasts until the next sunrise so if one eats grains during this period the fast is broken. It is not advised to eat in the pre-dawn hours in Vedic teachings, and especially not on ekadasi. Fasting should be followed from the time of waking on the ekadasi day. If the fast is accidentally broken, it should be followed for the rest of the day and the following day too.

Individuals whom are participating in a strict fast may not eat anything after sunset on the previous night to ensure there is no undigested food left in the stomach on Ekadasi. Many avoid eating any prasadam from an offering that includes grains. Vedic literature teaches that sin (papa-purusha) takes shelter in grains on Ekadasi, and therefore should be avoided in all forms (even if offered to Krishna). Ekadasi grain prasadam should be stored until the next day or can be distributed to persons not strictly following these regulations or to animals.

How to Break Ekadasi Fast

If a nirjala (complete fast without water) is observed then the fast does not have to be broken with grains on the following day. The fast can be broken with caranamrita (water from bathing Krishna’s feet), milk or fruit at the prescribed time outlined on the vaishnava calendar. This time will vary according to your location. If a partial Ekadasi fast is observed with fruit, vegetables, nuts etc. then it is necessary to break it with grains.

Foods That can be Eaten When Fasting on Ekadasi

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  • All fruits (fresh and dried);
  • All nuts and nut oils;
  • All types of sugar;
  • Buckwheat;
  • Potatoes, cassava and sweet potatoes;
  • Coconut;
  • Olives;
  • Milk;
  • Fresh ginger;
  • Black pepper; and
  • Rock salt.
  • Restricted foods on Ekadasi

Ekadashi Vrat Food (Khana):

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If even one grain is ingested, even accidentally, the Ekadasi fast is considered to be broken. Therefore great care is taken when cooking and spices are taken from a brand new package untouched by grains. The following foods must not be consumed on ekadasi:

  • All grains (e.g. millet, barley, farina, rice and urad dahl flour) and products derived from these ingredients;
  • Peas, chickpeas, dahl and all types of beans, including derived products such as tofu;
  • Salt, baking soda, baking powder, custard and many sweets are avoided as they are often mixed with rice powder;
  • Sesame seeds (except on Sat-tila Ekadasi, when sesame seeds may be offered as well as eaten);
  • Spices such as asafetida, cloves, fenugreek, mustard, tamarind, fennel, cardamom and nutmeg.

Fasting on ekadasi is an important austerity followed by devotees of Krishna and is undertaken to increase spiritual development. It is better to eat a little of the allowed foods rather than fast completely and become too weak to fulfill your duties and devotional service.

– by Priya Chauhan

Ekadashi Vrat Katha in English: (Support Us)

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Ekadashi Vrat Katha in Hindi: (Support Us)

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Known Words: Ekadasi in 2014, dawn hours, ekadashi, ekadasi, hare krishna, krishna devotees, prasadam, vaishnava calendar, vedic teachings, waxing moon